मल से कैंसर की जांच 2025 अब कोलोरेक्टल कैंसर की पहचान का आसान और भरोसेमंद तरीका बन गया है। 2025 में वैज्ञानिकों ने एक ऐसा स्टूल टेस्ट विकसित किया है जो लगभग 90% सटीकता के साथ कोलोरेक्टल कैंसर की पहचान कर सकता है। यह टेस्ट पारंपरिक कोलोनोस्कोपी का विकल्प बन सकता है, जिससे समय रहते कैंसर की पहचान संभव हो सकेगी।
कैसे काम करती है मल से कैंसर की जांच?
मल से कैंसर की जांच के लिए वैज्ञानिकों ने आंतों में मौजूद बैक्टीरिया के सबस्पीशीज़ स्तर पर विश्लेषण किया। इस टेस्ट में:
- स्टूल सैंपल में मौजूद माइक्रोबियल सिग्नेचर की पहचान की जाती है।
- मशीन लर्निंग मॉडल इन सिग्नेचर को पढ़कर कैंसर की संभावना का विश्लेषण करता है।
- पूरी प्रक्रिया गैर-इनवेसिव है और घर पर ही किया जा सकता है।
सटीकता और लाभ
विशेषता | विवरण |
---|---|
सटीकता | लगभग 90% |
प्रक्रिया | पूरी तरह गैर-इनवेसिव |
उपयोग | घर पर सैंपल लेकर भेजा जा सकता है |
तुलना कोलोनोस्कोपी से | लगभग बराबर सटीकता, लेकिन अधिक सरल |
संभावित लाभ | जल्दी पहचान, कम खर्च, अधिक पहुंच |
क्यों ज़रूरी है मल से कैंसर की जांच?
कोलोरेक्टल कैंसर अक्सर बिना लक्षणों के वर्षों तक बढ़ता रहता है। जब तक लक्षण सामने आते हैं, तब तक इलाज की संभावना कम हो जाती है। मल से कैंसर की जांच इस समस्या का समाधान बन सकती है:

- डर, शर्म या अस्पताल की कमी के कारण लोग कोलोनोस्कोपी से बचते हैं।
- स्टूल टेस्ट सरल, सुलभ और कम खर्चीला है।
- इससे बड़ी संख्या में लोग समय रहते जांच करवा सकते हैं।
कैसे विकसित हुआ यह टेस्ट?
वैज्ञानिकों ने मानव गट माइक्रोबायोम का सबसे विस्तृत कैटलॉग तैयार किया। इसमें:
- हजारों बैक्टीरियल सबस्पीशीज़ की पहचान की गई।
- मशीन लर्निंग मॉडल को इन डाटा पर प्रशिक्षित किया गया।
- नए सैंपल पर टेस्ट करने पर लगभग 90% मामलों में कैंसर की सही पहचान हुई।
मल से कैंसर की जांच अब वैज्ञानिकों की रिसर्च का केंद्र बन चुकी है।
क्लीनिकल ट्रायल की स्थिति
हालांकि यह टेस्ट अभी पूरी तरह से कोलोनोस्कोपी को नहीं बदल सकता, लेकिन जेनेवा यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स के साथ मिलकर क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो चुके हैं। इन ट्रायल्स में यह देखा जाएगा:
- क्या यह टेस्ट छोटे पॉलीप्स और शुरुआती कैंसर को भी पहचान सकता है?
- क्या विविध जनसंख्या पर भी इसकी सटीकता बनी रहती है?
- क्या यह टेस्ट शुरुआती चरण में ही इलाज की दिशा तय कर सकता है?
कई और बीमारियों में भी मददगार
मल से कैंसर की जांच सिर्फ कोलोरेक्टल कैंसर तक सीमित नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आंतों में मौजूद बैक्टीरिया की गहराई से जांच यानी माइक्रोबायोम की मैपिंग से कई और बीमारियों की पहचान भी संभव है:
- डायबिटीज़, मोटापा और आंतों की सूजन जैसी समस्याओं को शुरुआती स्तर पर पकड़ा जा सकता है।
- हर व्यक्ति के शरीर में मौजूद बैक्टीरिया के आधार पर उसका पर्सनल इलाज तय किया जा सकता है।
👉 इसका मतलब यह टेस्ट भविष्य में सिर्फ कैंसर ही नहीं, बल्कि कई दूसरी बीमारियों की पहचान और रोकथाम में भी अहम भूमिका निभा सकता है।
निष्कर्ष
मल से कैंसर की जांच 2025 में एक बड़ा कदम है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य को बदल सकता है। यह टेस्ट डर, खर्च और असहजता की बाधाओं को हटाकर समय रहते कैंसर की पहचान में मदद करेगा। अगर क्लीनिकल ट्रायल सफल होते हैं, तो यह टेस्ट भविष्य में कैंसर स्क्रीनिंग का पहला विकल्प बन सकता है।